
मौनी साधु तीस वर्षों तक एक सद्गुरु को खोजते रहे और उनकी इस खोज का समापन रमण महर्षि के प्रथम दर्शन से हुआ। महर्षि को देखते ही पोलैंडवासी एम्. सुडोस्की मौन और एकनिष्ठ हो गए, और उनका नाम मौनी साधु पड़ गया। इस पुस्तक के पचास अध्यायों में मौनी साधु ने एक साधक-जीवन के संघर्ष के इन्द्रधनुषी रंग बिखेरे हैं। इस पुस्तक में लेखक ने प्रकाश डाला है कि किस प्रकार से एक साधक को अपने आध्यात्मिक जीवन की बाधाओं और चुनौतियाँ से सामना करना पड़ता है, और इनसे उबरने के उपाय क्या हैं। ध्यान और आत्म-अन्वेषण की तकनीकें, इस पुस्तक को अत्यंत पठनीय बनाती है।
pp. xx + 280